
Nelson Mandela
नेल्सन मंडेला की प्रारंभिक शिक्षा
क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल में एवं स्नातक शिक्षा हेल्डटाउन में हुई थी।
‘हेल्डटाउन’ अश्वेतों के लिए बनाया गया विशेष कॉलेज था। इसी कॉलेज में
मंडेला की मुलाकात ‘ऑलिवर टाम्बो’ से हुई, जो जीवन भर उनके दोस्त एवं
सहयोगी रहे। 1940 तक नेल्सन मंडेला और ऑलिवर ने कॉलेज कैंपस में अपने
राजनैतिक विचारों और क्रियाकलापों से लोकप्रियता अर्जित कर ली थी। कॉलेज
प्रशासन को जब इसकी खबर लगी तो दोनो को कॉलेज से निकाल दिया गया।
मंडेला की क्रांति की राह से परिवार बहुत
चिंतित रहता था। परिवार ने उनका विवाह करा कर उन्हे जिम्मेदारियों में
बाँधने का प्रयास किया परन्तु नेल्सन निजी जीवन को दरकिनार करते हुए घर से
भागकर जोहान्सबर्ग चले गये। वहाँ उन्होने सोने की खदान में चौकीदार की
नौकरी की एवं वहीं अलेंक्जेंडरा नामक बस्ती में रहने लगे । इसके बाद
उन्होने एक कानूनी फर्म में लिपिक की नौकरी की। जोहान्सबर्ग में ही उलकी
मुलाकात ‘वाटर सिसलु’ और ‘वाटर एल्बरटाइन’ से हुई। नेल्सन के राजनीतिक जीवन
पर इन दो मित्रों का अत्यधिक प्रभाव पङा। उन सभी ने अपने कुछ साथियों के
साथ मिलकर ‘अफ्रिकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग’ का गठन किया। 1947 में मंडेला
इस संगठन के सचिव चुन लिये गए। इसके साथ ही उन्हे ट्रांन्सवाल एएनसी का
अधिकारी भी नियुक्त किया गया। इसी दौरान अफ्रिकन नेशनल कांग्रेस (ANC) के
चुनावें में करारी हार का सामना करना पङा। कांग्रेस के अध्यक्ष को हटाकर
किसी नये अध्यक्ष की मांग जोर पकङने लगी थी। यूथ कांग्रेस के विचारों को
अपनाकर मुख्य पार्टी को आगे बढाने का विचार रखा गया। ‘वाल्टर सिसलू’ ने एक
कार्ययोजना का निर्माण किया, जो अफ्रिकन नेशनल कांग्रेस द्वारा मान लिया
गया। तद्पश्चात 1951 में नेल्सन को यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया।
नेल्सन ने 1952 में कानूनी लङाई लङने के
लिए एक कानूनी फर्म की स्थापना की। नेल्सन की बढती लोकप्रियता के कारण उन
पर प्रतिबंध लगा दिया गया। वर्गभेद के आरोप में उन्हे जोहान्सबर्ग के बाहर
भेज दिया गया। उन पर प्रतिबंध लगा दिया गया कि वे किसी भी बैठक में भाग नही
ले सकते। सरकार के दमन चक्र से बचने के लिए नेल्सन और ऑलिवर ने एक एम
प्लान बनाया। एम का मतलब मंडेला से था। निर्णय लिया गया कि कांग्रेस को
टुकङों में तोङकर काम किया जाए तथा परिस्थिती अनुसार भूमिगत रहकर काम किया
जाए। प्रतिबंध के बावजूद नेल्सन क्लिपटाउन चले गये और वहाँ कांग्रेस के
जलसों में भाग लेने लगे। उन्होने वहाँ उन सभी संगठनों के साथ काम किया जो
अश्वेतों की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष कर रहे थे।
आन्दोलन और नेल्सन जीवन संगी बन गये थे।
एएनसी (ANC) ने स्वतंत्रता का चार्टर स्वीकार किया और इस कदम ने सरकार का
संयम तोङ दिया। पूरे देश में गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया। एएनसी के
अध्यक्ष और नेल्सन के साथ पूरे देश से रंगभेद का आंदोलन का समर्थन करने
वाले 156 नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। आंदोलन नेतृत्व विहीन हो गया।
नेल्सन और उनके साथियों पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया। इस अपराध की सजा
मृत्युदंड थी। सभी नेताओं के खिलाफ मुकदमा चलाया गया और 1961 में नेल्सन
तथा 29 साथियों को निर्दोष घोषित करते हुए छोङ दिया गया।
सरकार के दमन चक्र के कारण नेल्सन का
जनाधार बढ रहा था। रंगभेद सरकार आंदोलन तोङने का हर संभव प्रयास कर रही थी।
is बीच कुछ ऐसे कानून पास किये गये जो अश्वेतों के हित में नहीं थे।
नेल्सन ने इन कानूनों का विरोध किया। विरोध प्रर्दशन के दौरान ही
‘शार्पविले’ शहर में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी।
लगभग 180 लोग मारे गये। सरकार के इस क्रूर दमन चक्र से नेल्सन का अहिंसा पर
से विश्वास उठ गया।अत्यचारों की पराकाष्ठा को देखते हुए एएनसी ने हथियार
बंद लङाई लङने का फैसला लिया। एएनसी के लङाके दल का नाम ‘स्पियर ऑफ द नेशन’
रखा गया तथा नेल्सन को इसका अध्यक्ष बनाया गया। सरकार इस संगठन को खत्म
करके नेल्सन को गिरफ्तार करना चाहती थी। जिससे बचने के लिए नेल्सन देश के
बाहर चले गये और ‘अदीस अबाबा’ में अपने आधारभूत अधिकारों की मांग करने लगे।
उसके बाद अल्जीरीया गये जहाँ गोरिल्ला तकनीक का प्रशिक्षण लिया । इसके बाद
मंडेला लंदन चले गये जहाँ उनकी मुलाकात फिर से ‘ऑलिवर टॉम्बो’ से हुई।
लंदन में विपक्षी दलों के साथ मिलकर उन्होने पूरी दुनिया को अपनी बात
समझाने का प्रयास किया। एक बार पुनः वे दक्षिण अफ्रिका पहुँचे जहाँ उन्हे
गिरफ्तार कर लिया गया। नेल्सन को पाँच साल की सजा सुनाई गई। उन पर आरोप लगा
कि वे अवैधानिक तरीके से देश छोङकर गये थे। सरकार उन्हे क्रांति का नेता
नही मान रही थी। इसी दौरान सरकार ने ‘लीलीसलीफ’ में छापा मारकर एमके
मुख्यालय को तहस-नहस कर दिया। एमके के सभी बङे नेता गिरफ्तार किये गये और
मंडेला समेत सभी को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। मंडेला को ‘रोबन द्वीप’ भेजा
गया जो दक्षिण अफ्रिका का कालापानी माना जाता है।
1989 को दक्षिण अफ्रिका में सत्ता
परिर्वतन हुआ और उदारवादी नेता एफ डब्ल्यू क्लार्क देश के मुखिया बने।
उन्होने अश्वेत दलों पर लगा सभी प्रतिबंध हटा दिया। उन सभी बंदियों को रिहा
कर दिया गया जिन पर अपराधिक मुकदमा नही चल रहा था। मंडेला की जिंदगी की
शाम में आजादी का सूर्य उदय हुआ। 11 फरवरी 1990 को मंडेला पूरी तरह से आजाद
हो गये। 1994 देश के पहले लोकतांत्रिक चुनाव में जीत कर दक्षिण अफ्रिका के
राष्ट्रपति बने।
आमतौर पर छींटदार शर्ट पहनने वाले नेल्सन
मंडेला मजाकिया मिजाज के बेहद हँसमुख व्यक्ति थे। 1993 में ‘नेल्सन मंडेला’
और ‘डी क्लार्क’ दोनो को संयुक्त रूप से शांती के लिए नोबल पुरस्कार दिया
गया। 1990 में भारत ने उन्हे देश के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया। मंडेला, भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी हैं।
मंडेला बच्चों को बहुत प्यार करते थे।
2002 में उनके पैतृक गॉव में क्रिसमस की पार्टी में 20,000 से भी ज्यादा
बच्चों ने हिस्सा लिया था और तीन-चार दिन तक खूब धमाचौकङी मचाई थी। मंडेला
एक वकील और मुक्केबाज भी थे। 1998 में एक कार्यक्रम में उन्होने कहा था कि,
मुझे इस बात का अफसोस रहेगा कि मैं हेवीवेट मुक्केबाजी का विश्व चैम्पियन
खिताब नही जीत पाया।
जेल के दौरान परंपरा अनुसार हर कैदी को
नम्बर से जाना जाता है। मंडेला का नम्बर था 46664, ये नम्बर आज भी जीवन के
विभिन्न क्षेत्रों में धङक रहा है। दक्षिण अफ्रिका के बीमार पङे कपङा
उद्योग में प्रांण फूंकने के लिए नए लेबल को आकार दिया गया ओर इसे 46664
apparel के नाम से नेल्सन मंडेला को समर्पित किया गया। 2002 में 46664 नामक
एक संगठन बनाया गया, जिसने एड्स और एचआईवी के प्रति युवाओं में जागरुकता
लाने का अभियान चलाया।
दुनिया भले ही उन्हे नेल्सन मंडेला के नाम
से जानती हो किन्तु उनके पाँच और नाम भी थे। माता-पिता द्वारा रखा पहला
नाम रोहिल्हाला, नेल्सन नाम प्राथमिक विद्यालय के एक अध्यापक द्वारा रखा
गया था। दक्षिण अफ्रिका में उन्हे मदीबा नाम से जाना जाता है। कुछ लोग
उन्हे टाटा या खुलू भी कहते थे, अफ्रिकी भाषा में जिसका अर्थ होता है
क्रमशः पिता और दादा होता है। मंडेला को 16 वर्ष की उम्र में डालीभुंगा नाम
से भी पुकारा जाता था।
दक्षिण अफ्रिका में रंगभेद विरोधी आंदोलन
के पुरोधा, महात्मा गाँधी से प्रेरणा लेने वाले देश के पहले अश्वेत
राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला का लम्बी बीमारी के बाद 5 दिसंबर 2013 को निधन
हो गया। उनके निधन की खबर उस समय आई जब लंदन के एक हॉल में उनके जीवन पर
बनी फिल्म ‘मंडेलाः लांग वॉक टू फ्रीडम’ का प्रीमियर चल रहा था। प्रीमियर
समाप्त होने पर सभी को ये खबर फिल्म के निर्माता अंनत सिंह ने दी।
मंडेला अभूतपूर्व और वीर इंसान थे। वो ऐसी
शख्सियत थे जिनका जन्मदिन नेल्सन मंडेला अंर्तराष्ट्रीय दिवस के रूप में
उनके जीवन काल में ही मनाया जाने लगा था। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की
मून ने कहा था कि, मंडेला संयुक्त राष्ट्र के उच्च आर्दशों के प्रतीक हैं।
मंडेला को ये सम्मान शांती स्थापना, रंगभेद उन्मूलन, मानवाधिकारों की रक्षा
और लैंगिग समानता की स्थापना के लिए किये गये उनके सतत प्रयासों के लिए
दिया गया है।
आज भले ही मंडेला इस नश्वर संसार में नही
हैं, लेकिन उनके त्याग और संघर्ष की महागाथा पूरी दुनिया को प्रेरणा देने
के लिए जीवित है। नेल्सन मंडेला ने एक ऐसे लेकतांत्रिक और स्वतंत्र समाज की
कल्पना की जहाँ सभी लोग शांती से मिलजुल कर रहें और सबको समान अवसर
प्राप्त हो। उनका कहना था कि , “जब कोई व्यक्ति अपने देश और लोगों की सेवा
को अपने कर्तव्य की तरह निभाता है तो उन्हे शांती मिलती है। मुझे लगता है
कि मैने वो कोशिश की है और इसलिए मैं शांती से अंतकाल तक सो सकता हूँ।“
हम इस महान नेता को शत-शत नमन करते हैं।