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Friday, 17 January 2014

तुम बनोगे CEO...../motivational-stories

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एक बहुत बड़ी company के CEO जल्द ही retire होने वाले थे.
वो इस company को बहुत ही मेहनत से इस मुकाम पर लाये थे. इसलिए वो चाहते थे की किसी काबिल व्यक्ति को ही अपना उत्तराधिकारी बनाए.
इसके लिए उन्होंने अपने company में कार्य करने वाले सभी होनहार युवाओं की एक मीटिंग बुलाई.
उन्होंने उस मीटिंग में सभी को एक-एक पोधे का बीज दिया.
और कहा- ” इस बीज को आप लोग घर ले जाकर एक गमले में रोपे, इसकी देखभाल करें, इसे पानी दे, नियमित धूप दे, और एक साल बाद जिसका भी पौधा सबसे अच्छा होगा. उसे company का भावी CEO नियुक्त किया जाएगा.
सभी कार्यकर्ता इस बात से बहुत खुश हुए, सभी को यकीन था की वो ही इस प्रतियोगिता में विजय होगे.
इन्ही में से एक काबिल नौजवान लड़की थी ‘भावना’. उसे भी इसमें बड़ा interest आया.
जैसे ही ऑफिस से छुट्टी हुई, वो रास्ते में एक छोटा प्यारा गमला ख़रीद लायी. और घर जाते ही उस बीज को उस गमले में रोप दिया.
उसने अपने पापा को भी सारी बात बताई. और उसके पापा भी उसके साथ खुश हुए. पर उन्होंने उसे ये भी सलाह दी की वो अपने काम पर भी पूरा ध्यान दे. इस बीज के साथ साथ, अपने office के हर कार्य को संपूर्ण लगन से करे..
कुछ दिन बीत गए.. भावना रोज गमले में पानी देती, उसका पूरा ध्यान रखती. पर उसमे से कुछ भी नहीं निकलता.
1 हफ्ता गुजरा, 2 हफ़्ते गुजरे, 1 महीना हो गया.. पर वो बीज अंकुरित नहीं हुआ..
भावना बहुत उदास हुई.. पर वो अपने काम में मन लगाये हुए थी..
6 महीने बाद भावना ने अपने बचपन के दोस्त से शादी कर ली.. और अपने नए घर में अपना गमला भी लेकर आई..
समय बीतता गया.. गमले में कुछ भी नहीं उगा.. भावना को रोज गमले में पानी डालते देख, उसके पति ने भी उससे सवाल किया की आखिर ये है क्या?
तब उसने उसे सबकुछ बता दिया. उसने भावना को परेशान न होने की सलाह दी और काम करते रहने को कहा..
धीरे धीरे वो दिन भी आ गया. जब सभी को company में अपने अपने पौधे लेकर आने थे.
भावना ने अपने पति से कहा की वो इस ख़ाली गमले के साथ company नहीं जा सकती. ऐसे तो उसकी बहुत बैज्ज़ती होगी.
उसके पति ने उसे समझाया की उसे honest रहना चाहिए. और जो हुआ उसे फेस करना चाहिए.
भावना ख़ाली गमला लेकर company गयी.
उसे इस तरह देख सभी ने उसका मजाक उड़ाया. तभी meeting start हो गयी. company के CEO ने सभी के हरे भरे गमले देख फक्र से कहा, “मुझे आप सभी पर गर्व है. आपने अपने पौधों का बहुत ही अच्छा ख्याल रखा है.”
पर जैसे ही भावना का गमला देखा.. उन्होंने उससे पूछा की आखिर उसका गमला ख़ाली क्यों है?
भावना ने उन्हें सबकुछ सच सच बता दिया.
CEO ने भावना को छोड़ सभी को बैठने के लिए कहा.
और announce किया “आज से आपकी नयी CEO है भावना शर्मा
सभी हैरान हो गए.
“आखिर ये CEO कैसे बन सकती है? इसका तो पौधा उगा भी नहीं.” सभी ने सवाल उठाये.
तब वृद्ध CEO ने कहा- “दरअसल, एक साल पहले मैंने आप सभी को जो बीज दिए थे. वो उबले हुए थे. उनमे जान ही नहीं थी. उनमे से पौधा उगाया ही नहीं जा सकता था. केवल भावना ने ही सच्चाई सामने रखी. और इसीलिए यही CEO पद की असली हक़दार है.”

मैंने अपनी इस छोटी सी life में बहुत सारे छोटे बड़े झूट बोले होगे. पर मैं सभी को स्वीकार भी करता हूँ की “हाँ, मैंने ऐसा किया.”
सभी को ऐसा करना चाहिए. सच बेहतर होता है.

आपको ये कहानी कैसी लगी? 
हमे comments में जरुर बताये.

प्रेरक प्रसंग of महात्मा गांधी in हिंदी

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प्रेरक  प्रसंग  of महात्मा  गांधी  in हिंदी
 
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(1) 

एक बार गांधीजी एक विद्यालय में गए. उस समय वे केवल लंगोटी ही पहनते थे. विद्यालय का एक बच्चा उनसे कुछ पूछना चाहता था. लेकिन उनके टीचर ने उसे चुप करवा दिया. गांधी जी ने यह देख लिया. वे उस विद्यार्थी के पास पहुंचे और पूछा, ‘तुम कुछ कहना चाहते हो ? ‘ बालक ने कहा, ‘हाँ ! आपने कुर्ता क्यों नहीं पहन रखा है ? मैं अपनी माँ से कहूँगा कि वह आपके लिए कुरता सिल दें. आप पहनोगे ना ?’ 

गांधी जी ने कहा, ‘ मैं जरुर पहनूंगा लेकिन मैं अकेला नहीं हूँ. ‘ बालक ने कहा, ‘ तब तो मैं दो कुर्ते सिलवा दूंगा. ‘ बापू बोले, ‘ मेरे चालीस करोड़ भाई-बहन हैं. क्या तुम्हारी माँ इतने कुर्ते सिल सकती है ?’ 

उस समय हमारे देश की जनसँख्या चालीस करोड़ थी. बापू बच्चे की पीठ थपथपाकर आगे बढ़ गए. 

(2) 

एक बार गांधीजी आश्रम में सूत काट रहे थे. अचानक एक जरुरी काम आ जाने की वजह से उन्हें जाना पड़ा. उन्होंने अपने एक सहयोगी से कहा, ‘ सूत के तारों को गिनकर एक तरफ रख देना और प्रार्थना से पहले मुझे संख्या बता देना. ‘ सहयोगी ने हाँ कह दिया. आश्रम में शाम को सभी अपने काते हुए सूतों की संख्या बताते थे. 

सहयोगी ने उनका काम नहीं किया और जब गांधी जी का नाम पुकारा गया तो वे सूतों की संख्या नहीं बता पाए. गांधी जी बहुत गंभीर हो गए. उन्होंने कहा, ‘ आज मैंने अपना कार्य किसी और के भरोसे छोड़ दिया. मैं मोह में था. मुझे लगा वे मेरा काम कर देंगे. मुझे अपना कार्य स्वयं ही करना चाहिए था. मैं अब कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा. 

(3)

जब गाँधी जी छोटे थे तब एक बार उन्होंने अपने भाई का सोना चुरा लिया था. लेकिन उनके इस कार्य का उनके बाल मन पर इतना बोझ पड़ा कि वे विचलित हो गए. उन्होंने अपने पिता को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने सारी सच्चाई स्वीकार कर ली. पिताजी ने जब पत्र पढ़ा तो वे बहुत नाराज हुए पर गाँधी जी के सत्य को स्वीकार करने के साहस के कारण पिता ने उन्हें माफ़ कर दिया. गांधीजी का कहना था कि अगर आपसे कोई अपराध या गलती हो भी गयी है तो उसे स्वीकार कर लें. सत्य स्वीकार करने से कोई छोटा नहीं होता बल्कि यह उसका बड़प्पन होता है. 

(4) 

गांधीजी का नाम मोहनदास था और उनकी माँ पुतलीबाई उन्हें प्यार से मोनिया कहकर बुलाती थी. मोहन अपनी माँ से बहुत प्यार करता था और उनकी हर बात ध्यान से सुनता था. उनके घर में एक कुंआ था. कुएं के चारों ओर पेड़-पौधे लगे थे. बच्चों को कुएं की वजह से पेड़ों पर चढ़ने की मनाही थी. लेकिन मोहन फिर भी पेड़ पर चढ़ जाता था. एक दिन मोहन के बड़े भाई ने मोहन को कुएं के पास वाले पेड़ पर चढ़ा हुआ देख लिया. उन्होंने मोहन को पेड़ से उतरने को कहा पर मोहन नहीं उतरा. भाई ने गुस्से में मोहन को चांटा मार दिया. 

रोता हुआ मोहन माँ के पास गया और बोला, ‘ माँ बड़े भैया ने मुझे चांटा मारा. आप भैया को डांट लगाओ.’

माँ काम में व्यस्त थी. मोहन माँ से बार- बार भैया के मारने की बात कहता रहा. माँ ने परेशान होकर कहा, ‘ उसने तुझे मारा है न ? जा तू भी उसे मार दे. मुझे अभी तंग मत कर मोनिया. ‘ 

आंसू पोंछते हुए मोहन ने कहा, ‘ माँ यह तुम क्या कह रही हो. तुम तो हमेशा कहती हो कि बड़ों का आदर करना चाहिए. तो मैं भैया पर हाथ कैसे उठा सकता हूँ ? हां तुम भैया से बड़ी हो इसलिए तुम भैया को समझा सकती हो कि वे मुझे ना मारे.’ 

मोहन की बात सुनकर माँ को अपनी भूल का अहसास हो गया. काम छोड़कर उन्होंने अपने बेटे मोहन को गले से लगा लिया. उनकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे. वे बोली, ‘ तू मेरा राजा बेटा है, मोनिया. आज तूने मुझे मेरी भूल बता दी. हमेशा सच्चाई और ईमानदारी की राह पर चलना मेरे लाल.’ 

(5) 

जब कराडी गाँव में नमक सत्याग्रह पहुंचा तो सुबह-सुबह गाँव वालों ने एक जुलूस निकाला. सबसे आगे स्त्रियाँ थी जिनके हाथ में राष्ट्रीय ध्वज था. बाजे भी बज रहे थे. लोगों के हाथों में फल-फूल और पैसे भी थे. 

लोगों ने आकर गांधीजी को प्रणाम किया और सारे उपहार उनके चरणों में रख दिए. गांधीजी ने पूछा , ‘ तुम लोग बाजे क्यों बजा रहे हो ? ‘ 

लोगों ने कहा, ‘हमारे गाँव में पीने के पानी का अकाल रहता है पर आपके आने से इस बार कुओं में पानी आ गया है. इसलिए हम लोग बाजे बजा रहे हैं.’ 

गांधीजी अपनी मुद्रा कठोर करते हुए बोले, ‘ मेरे आने और पानी का क्या सम्बन्ध है ? ईश्वर पर मेरा अधिकार नहीं है. उसके लिए जो मूल्य आपकी वाणी का है वहीँ मेरी वाणी का भी है. अगर किसी डाल पर कौआ बैठे, और डाल टूट जाए तो तुम कहोगे कि कौवे की वजह से डाल टूट गयी. कुओं में पानी आने के कई कारण हो सकते हैं. उस सत्य को जानो.’
 
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-आप को कैसा लगा comment करे ?
 

Essay on Positive Thinking in हिंदी

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कुछ लोगों को अपने ज्ञान और पद का बहुत घमंड होता है और अपने आगे वे किसी को कुछ नहीं समझते पर सच सिर्फ इतना है कि दुनिया के हर प्राणी और हर वस्तु से हमें कुछ ना कुछ सीखने को मिल सकता है. हम कभी भी यह दावा नहीं कर सकते कि हम सर्व ज्ञानी है और हमें तो सब कुछ आता है. इसलिए चाहे हम जितने भी बड़े हो जाएँ पर रहते हमेशा एक विद्यार्थी ही हैं, जिसका सीखना जीवन पर्यंत जारी रहता है. 
हमारे जीवन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हर व्यक्ति, हमारे जीवन में घटित होने वाली हर घटना, यह प्रकृति, इसके सभी प्राणी और पेड़-पौधे बल्कि यूँ कहूँ कि संसार की हर वस्तु हमें कुछ ना कुछ सिखाती ही हैं. हम सभी ने बचपन में चींटी और मकड़ी की कहानी सुनी है. एक चींटी ऊँचाई पर चढ़ते समय कई बार गिरती है, लेकिन वह हार कर कभी नहीं ठहरती बल्कि अपनी कोशिश अनवरत जारी रखती है. तात्पर्य यह है कि एक चींटी और मकड़ी से मिली सीख भी हमारे जीवन की दिशा बदलने का मादा रखती है. 
अतः हमें कभी भी खुद को इतना महान और बड़ा नहीं समझ लेना चाहिए कि सीखने का हर द्वार हम यह सोचकर बंद कर दें कि हमें तो सब कुछ आता है, किसी की क्या औकात जो हमें कुछ सिखा और पढ़ा सके. याद रखिये - सर्वज्ञानी कोई नहीं होता. 
कई बार ऐसा होता है कि कोई हमारे विचार से सहमत नहीं होता और हमारा विरोध करता है, पर इसे सकारात्मक रूप से लिया जाना चाहिए ना कि यह सोचना चाहिए कि विरोध करने वाला तो हमारा दुश्मन है और हमसे जलता है. हो सकता है वह हमारा दुश्मन भी हो और हमसे ईर्ष्या भी रखता हो, पर यह भी जरुरी नहीं कि उसकी कही हर बात गलत ही हो. 
रावण के बारे में हम सबने पढ़ा, सुना और देखा है. वह महाज्ञानी था लेकिन उसके एक गलत विचार से सारी लंका का सर्वनाश हो गया. उसके शुभचिंतकों ने उसे बहुत समझाया पर अपने अहम् में वह इतना अँधा हो गया कि उसने किसी की नहीं सुनी. महान से महान ज्ञानी व्यक्ति का भी कोई विचार गलत हो सकता है. इसलिए कभी भी अहम् में इतना अँधा नहीं होना चाहिए कि जो हमारा समर्थन करे वे हमें हमारे दोस्त और जो विरोध करे, वे हमें हमारे दुश्मन नज़र आने लगे. चापलूसों से हमेशा सावधान रहें.
अगर कोई विचार सचमुच अच्छा है और ग्रहण करने योग्य है तो उसका खुले दिल से स्वागत करना चाहिए. अपनी सोच को परिष्कृत करने का मार्ग हमेशा खुला रखना चाहिए और इस रास्ते में हमारा अहम् आड़े नहीं आना चाहिए. विचारों के विरोध और समर्थन को व्यक्ति का विरोध या समर्थन ना बनने दें, क्योंकि गलती तो कभी भी किसी से भी हो सकती है और कभी कोई सही भी हो सकता है. अतः मतभेद कभी मनभेद नहीं बनने चाहिए.
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Positive Thinking in हिंदी आर्टिकल

 
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कुछ लोगों को अपने ज्ञान और पद का बहुत घमंड होता है और अपने आगे वे किसी को कुछ नहीं समझते पर सच सिर्फ इतना है कि दुनिया के हर प्राणी और हर वस्तु से हमें कुछ ना कुछ सीखने को मिल सकता है. हम कभी भी यह दावा नहीं कर सकते कि हम सर्व ज्ञानी है और हमें तो सब कुछ आता है. इसलिए चाहे हम जितने भी बड़े हो जाएँ पर रहते हमेशा एक विद्यार्थी ही हैं, जिसका सीखना जीवन पर्यंत जारी रहता है. 

हमारे जीवन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हर व्यक्ति, हमारे जीवन में घटित होने वाली हर घटना, यह प्रकृति, इसके सभी प्राणी और पेड़-पौधे बल्कि यूँ कहूँ कि संसार की हर वस्तु हमें कुछ ना कुछ सिखाती ही हैं. हम सभी ने बचपन में चींटी और मकड़ी की कहानी सुनी है. एक चींटी ऊँचाई पर चढ़ते समय कई बार गिरती है, लेकिन वह हार कर कभी नहीं ठहरती बल्कि अपनी कोशिश अनवरत जारी रखती है. तात्पर्य यह है कि एक चींटी और मकड़ी से मिली सीख भी हमारे जीवन की दिशा बदलने का मादा रखती है. 

अतः हमें कभी भी खुद को इतना महान और बड़ा नहीं समझ लेना चाहिए कि सीखने का हर द्वार हम यह सोचकर बंद कर दें कि हमें तो सब कुछ आता है, किसी की क्या औकात जो हमें कुछ सिखा और पढ़ा सके. याद रखिये - सर्वज्ञानी कोई नहीं होता. 

कई बार ऐसा होता है कि कोई हमारे विचार से सहमत नहीं होता और हमारा विरोध करता है, पर इसे सकारात्मक रूप से लिया जाना चाहिए ना कि यह सोचना चाहिए कि विरोध करने वाला तो हमारा दुश्मन है और हमसे जलता है. हो सकता है वह हमारा दुश्मन भी हो और हमसे ईर्ष्या भी रखता हो, पर यह भी जरुरी नहीं कि उसकी कही हर बात गलत ही हो. 

रावण के बारे में हम सबने पढ़ा, सुना और देखा है. वह महाज्ञानी था लेकिन उसके एक गलत विचार से सारी लंका का सर्वनाश हो गया. उसके शुभचिंतकों ने उसे बहुत समझाया पर अपने अहम् में वह इतना अँधा हो गया कि उसने किसी की नहीं सुनी. महान से महान ज्ञानी व्यक्ति का भी कोई विचार गलत हो सकता है. इसलिए कभी भी अहम् में इतना अँधा नहीं होना चाहिए कि जो हमारा समर्थन करे वे हमें हमारे दोस्त और जो विरोध करे, वे हमें हमारे दुश्मन नज़र आने लगे. चापलूसों से हमेशा सावधान रहें.

अगर कोई विचार सचमुच अच्छा है और ग्रहण करने योग्य है तो उसका खुले दिल से स्वागत करना चाहिए. अपनी सोच को परिष्कृत करने का मार्ग हमेशा खुला रखना चाहिए और इस रास्ते में हमारा अहम् आड़े नहीं आना चाहिए. विचारों के विरोध और समर्थन को व्यक्ति का विरोध या समर्थन ना बनने दें, क्योंकि गलती तो कभी भी किसी से भी हो सकती है और कभी कोई सही भी हो सकता है. अतः मतभेद कभी मनभेद नहीं बनने चाहिए...

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