प्रेरक प्रसंग of महात्मा गांधी in हिंदी
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(1)
एक
बार गांधीजी एक विद्यालय में गए. उस समय वे केवल लंगोटी ही पहनते थे.
विद्यालय का एक बच्चा उनसे कुछ पूछना चाहता था. लेकिन उनके टीचर ने उसे चुप
करवा दिया. गांधी जी ने यह देख लिया. वे उस विद्यार्थी के पास पहुंचे और
पूछा, ‘तुम कुछ कहना चाहते हो ? ‘ बालक ने कहा, ‘हाँ ! आपने कुर्ता क्यों
नहीं पहन रखा है ? मैं अपनी माँ से कहूँगा कि वह आपके लिए कुरता सिल दें.
आप पहनोगे ना ?’
गांधी
जी ने कहा, ‘ मैं जरुर पहनूंगा लेकिन मैं अकेला नहीं हूँ. ‘ बालक ने कहा,
‘ तब तो मैं दो कुर्ते सिलवा दूंगा. ‘ बापू बोले, ‘ मेरे चालीस करोड़
भाई-बहन हैं. क्या तुम्हारी माँ इतने कुर्ते सिल सकती है ?’
उस समय हमारे देश की जनसँख्या चालीस करोड़ थी. बापू बच्चे की पीठ थपथपाकर आगे बढ़ गए.
(2)
एक
बार गांधीजी आश्रम में सूत काट रहे थे. अचानक एक जरुरी काम आ जाने की वजह
से उन्हें जाना पड़ा. उन्होंने अपने एक सहयोगी से कहा, ‘ सूत के तारों को
गिनकर एक तरफ रख देना और प्रार्थना से पहले मुझे संख्या बता देना. ‘ सहयोगी
ने हाँ कह दिया. आश्रम में शाम को सभी अपने काते हुए सूतों की संख्या
बताते थे.
सहयोगी
ने उनका काम नहीं किया और जब गांधी जी का नाम पुकारा गया तो वे सूतों की
संख्या नहीं बता पाए. गांधी जी बहुत गंभीर हो गए. उन्होंने कहा, ‘ आज मैंने
अपना कार्य किसी और के भरोसे छोड़ दिया. मैं मोह में था. मुझे लगा वे मेरा
काम कर देंगे. मुझे अपना कार्य स्वयं ही करना चाहिए था. मैं अब कभी ऐसी
गलती नहीं करूँगा.
(3)
जब
गाँधी जी छोटे थे तब एक बार उन्होंने अपने भाई का सोना चुरा लिया था.
लेकिन उनके इस कार्य का उनके बाल मन पर इतना बोझ पड़ा कि वे विचलित हो गए.
उन्होंने अपने पिता को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने सारी सच्चाई स्वीकार
कर ली. पिताजी ने जब पत्र पढ़ा तो वे बहुत नाराज हुए पर गाँधी जी के सत्य को
स्वीकार करने के साहस के कारण पिता ने उन्हें माफ़ कर दिया. गांधीजी का
कहना था कि अगर आपसे कोई अपराध या गलती हो भी गयी है तो उसे स्वीकार कर
लें. सत्य स्वीकार करने से कोई छोटा नहीं होता बल्कि यह उसका बड़प्पन होता
है.
(4)
गांधीजी
का नाम मोहनदास था और उनकी माँ पुतलीबाई उन्हें प्यार से मोनिया कहकर
बुलाती थी. मोहन अपनी माँ से बहुत प्यार करता था और उनकी हर बात ध्यान से
सुनता था. उनके घर में एक कुंआ था. कुएं के चारों ओर पेड़-पौधे लगे थे.
बच्चों को कुएं की वजह से पेड़ों पर चढ़ने की मनाही थी. लेकिन मोहन फिर भी
पेड़ पर चढ़ जाता था. एक दिन मोहन के बड़े भाई ने मोहन को कुएं के पास वाले
पेड़ पर चढ़ा हुआ देख लिया. उन्होंने मोहन को पेड़ से उतरने को कहा पर मोहन
नहीं उतरा. भाई ने गुस्से में मोहन को चांटा मार दिया.
रोता हुआ मोहन माँ के पास गया और बोला, ‘ माँ बड़े भैया ने मुझे चांटा मारा. आप भैया को डांट लगाओ.’
माँ काम
में व्यस्त थी. मोहन माँ से बार- बार भैया के मारने की बात कहता रहा. माँ
ने परेशान होकर कहा, ‘ उसने तुझे मारा है न ? जा तू भी उसे मार दे. मुझे
अभी तंग मत कर मोनिया. ‘
आंसू
पोंछते हुए मोहन ने कहा, ‘ माँ यह तुम क्या कह रही हो. तुम तो हमेशा कहती
हो कि बड़ों का आदर करना चाहिए. तो मैं भैया पर हाथ कैसे उठा सकता हूँ ? हां
तुम भैया से बड़ी हो इसलिए तुम भैया को समझा सकती हो कि वे मुझे ना मारे.’
मोहन की
बात सुनकर माँ को अपनी भूल का अहसास हो गया. काम छोड़कर उन्होंने अपने बेटे
मोहन को गले से लगा लिया. उनकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे. वे बोली, ‘ तू
मेरा राजा बेटा है, मोनिया. आज तूने मुझे मेरी भूल बता दी. हमेशा सच्चाई और
ईमानदारी की राह पर चलना मेरे लाल.’
(5)
जब
कराडी गाँव में नमक सत्याग्रह पहुंचा तो सुबह-सुबह गाँव वालों ने एक जुलूस
निकाला. सबसे आगे स्त्रियाँ थी जिनके हाथ में राष्ट्रीय ध्वज था. बाजे भी
बज रहे थे. लोगों के हाथों में फल-फूल और पैसे भी थे.
लोगों ने आकर गांधीजी को प्रणाम किया और सारे उपहार उनके चरणों में रख दिए. गांधीजी ने पूछा , ‘ तुम लोग बाजे क्यों बजा रहे हो ? ‘
लोगों
ने कहा, ‘हमारे गाँव में पीने के पानी का अकाल रहता है पर आपके आने से इस
बार कुओं में पानी आ गया है. इसलिए हम लोग बाजे बजा रहे हैं.’
गांधीजी
अपनी मुद्रा कठोर करते हुए बोले, ‘ मेरे आने और पानी का क्या सम्बन्ध है ?
ईश्वर पर मेरा अधिकार नहीं है. उसके लिए जो मूल्य आपकी वाणी का है वहीँ
मेरी वाणी का भी है. अगर किसी डाल पर कौआ बैठे, और डाल टूट जाए तो तुम
कहोगे कि कौवे की वजह से डाल टूट गयी. कुओं में पानी आने के कई कारण हो
सकते हैं. उस सत्य को जानो.’
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-आप को कैसा लगा comment करे ?
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